Friday, 27 January 2012

‘बन्ने के नैना जादू बान...’ वर-बधू का श्रृंगारपूर्ण चित्रण


SWARGOSHTHI -52 Sanskar Geet – 4 
January 15, 2012 



स्वरगोष्ठी - 52 - संस्कार गीतों में अन्तरंग सम्बन्धों की सोंधी सुगन्ध (चौथा भाग)

   

मानव जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार, विवाह होता है। गृहस्थ जीवन की ओर बढ़ने वाला यह पहला कदम है। मुख्य वैवाहिक समारोह से पूर्व ही अनेक ऐसे प्रसंग होते हैं, जिनके सम्पादन के समय से गीतों का गायन आरम्भ हो जाता है। ऐसे गीत वर और कन्या, दोनों पक्षों में गाने की परम्परा है। बन्ना और बन्नी इसी अवसर के श्रृंगार प्रधान गीत है। 

स्वरगोष्ठी के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आज की इस सांगीतिक बैठक में एक बार पुनः उपस्थित हूँ। आपको स्मरण ही होगा कि इस स्तम्भ में हम शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक-संगीत पर चर्चा करते हैं। गत नवम्बर मास से हमने लोकगीतों के अन्तर्गत आने वाले संस्कार गीतों पर चर्चा आरम्भ की थी। इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम संक्षेप में यज्ञोपवीत अर्थात जनेऊ संस्कार पर और फिर विवाह संस्कार के गीतों पर चर्चा करेंगे।
मानव जीवन में विवाह संस्कार एक पवित्र समारोह के रूप में आयोजित होता है। इस अवसर के संस्कार गीतों में वर और कन्या, दोनों पक्षों के गीत मिलते हैं। विवाह से पूर्व एक और संस्कार होता है, जिसे यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ संस्कार कहा जाता है। वास्तव में यह प्राचीन काल का प्रचलित संस्कार है, जब उच्च शिक्षा के लिए किशोर आयु में माता-पिता का घर छोड़ कर गुरुकुल जाना पड़ता था। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने राजा दशरथ जाने का उल्लेख द्वारा अपने चारो पुत्रों को गुरुकुल भेजने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न किये इन पंक्तियों में किया है-
भए कुमार जबहिं सब भ्राता, दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता।
गुरगृह गए पढ़न रघुराई, अलप काल विद्या सब पाई।।
समय के साथ अब इस संस्कार में केवल औपचारिकता निभाई जाती है। विवाह से ठीक पहले और कहीं-कहीं तो विवाह के साथ ही इस संकार को सम्पन्न कर लिया जाता है। अवधी लोक संगीत के विद्वान राधावल्लभ चतुर्वेदी अपने लोकगीत संग्रह- ऊँची अटरिया रंग भरी में यज्ञोपवीत संस्कार के कई गीत संग्रहीत किये थे। इन्हीं में से एक गीत अब हम आपको सुनवाते हैं।
संस्कार गीत : यज्ञोपवीत : ‘आवो सखी सब मंगल गाओ...’ स्वर – क्षिति तिवारी और साथी
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यज्ञोपवीत संस्कार के इस मधुर गीत के बाद अब हम विवाह संस्कार के गीतों का सिलसिला आरम्भ करते हैं। भारतीय जीवन में विवाह एक ऐसा महत्त्वपूर्ण अवसर होता है जिससे जुड़े लोकगीत हर प्रान्त, हर क्षेत्र और हर भाषा के आज भी प्रयोग किये जाते हैं। शहरों में ही नहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी इन गीतों प्रचलन कम होता जा रहा है। विवाह के अवसर पर कुछ शास्त्रीय, तो कुछ लोकाचार के प्रसंग सम्पादित होते हैं। विवाह के सभी प्रसंगों के अलग-अलग गीत होते हैं। वर और कन्या, दोनों पक्षों की ओर से इन प्रसंगों पर गीत गाने की परम्परा है। वर और कन्या पक्ष के बड़े-बुजुर्ग जब विवाह तय कर देते हैं, उसी समय से ही मंगल गीतों के स्वरों से दोनों पक्षों के आँगन गूँजने लगते हैं। इन लोकाचारों पर गोस्वामी तुलसीदास की लघु कृति रामलला नहछू में श्रीराम के विवाह से पूर्व का उल्लास इन पंक्तियों में चित्रित किया गया है-
दूलह के महतारि देखि मन हरखई हो,
कोटिन्ह दीन्हेऊ दान मेघ जनु बरसई हो।
वर और कन्या के नख-शिख श्रृंगार की प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। वर पक्ष के ऐसे गीतों को बन्ना और कन्या पक्ष के गीतों को बन्नी कहा जाता है। आइए अब हम आपको एक अवधी बन्ना सुनवाते है।
संस्कार गीत : बन्ना : ‘बन्ने के नैना जादू बान मैं वारी जाऊँ...’: स्वर – क्षिति तिवारी और साथी
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बन्ना हो या बन्नी, इन गीतों में वर और कन्या का श्रृंगारपूर्ण वर्णन होता है। विवाह का दिन निकट आते ही कन्या पक्ष के आँगन भी ढोलक की थाप से गूँजने लगता है। फिल्मों में भी विवाह गीतों का प्रयोग हुआ है, किन्तु बन्ना या बन्नी का प्रयोग कम हुआ है। १९९५ में प्रदर्शित फिल्म दुश्मन में राजस्थान की पृष्ठभूमि में एक बन्नी का प्रयोग हुआ है। इस बन्नी गीत को सपना अवस्थी ने स्वर दिया है। फिल्म के संगीतकार आनन्द-मिलिन्द और गीतकार समीर हैं। अपने समय की फिल्मों में सैकड़ों लोकगीतों की रचना के लिए विख्यात गीतकार अनजान के सुपुत्र समीर हैं। आप यह बन्नी गीत सुनिए और मुझे आज यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिये।
बन्नी गीत : फिल्म – दुश्मन : ‘बन्नो तेरी अँखियाँ सुरमेदानी...’ : स्वर – सपना अवस्थी और साथी
http://www.youtube.com/watch?v=tNhfPvZOzsw        sg52sanskargeet3

अब हम आज के अंक को यहीं विराम देते हैं और आपको इस सुरीली संगोष्ठी में सादर आमंत्रित करते हैं। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। अपने ५०वें अंक में हमने पहेली की विजेता के रूप में इन्दौर की श्रीमती क्षिति तिवारी के नाम की घोषणा की थी, उन्होने अपने गाये हुए कुछ लोकगीतों के आडियो और वीडियो भेजे हैं। आज के अंक में हमने पहला और दूसरा संस्कार गीत उन्हीं के भेजे गीतों में से ही आपको सुनवाया है। हम आपके सुझाव, समालोचना, प्रतिक्रिया और फरमाइश की प्रतीक्षा करेंगे और उन्हें पूरा सम्मान देंगे। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा admin@radioplaybackindia.com पर अपना सन्देश भेज कर हमारी गोष्ठी में शामिल हो सकते हैं। आज हम आपसे यहीं विदा लेते हैं, अगले अंक में हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी।
झरोखा अगले अंक का   


आगामी २३जनवरी को अपने समय के सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ, शिक्षक, लेखक और प्रारम्भिक दौर की फिल्मों के संगीतकार पण्डित शंकरराव व्यास की ११३वीं जयन्ती है। २२जनवरी के अंक में हम उनकी फिल्म के एक बहुचर्चित गीत- ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ के बहाने भारतीय संगीत के एक श्रृंगार रस प्रधान राग पर चर्चा करेंगे। यदि आप गीत के राग का अनुमान लगाने में सफल हो रहे हों तो हमें राग का नाम बताइए। अगले अंक में हम विजेता के रूप में आपका नाम घोषित करेंगे।
कृष्णमोहन मिश्र            
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Tuesday, 10 January 2012

‘आज गावत मन मेरो....’ : गीत उस्तादों के, चर्चा राग- देसी की


SWARGOSHTHI -51 – Ustad Amir Khan & D.V. Paluskar
January 8, 2012 At 9-15 AM  

स्वरगोष्ठी – 51

आज गावत मन मेरो.... : गीत उस्तादों के, चर्चा राग- देसी की

हिन्दी फिल्मों का इतिहास १९५३ में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म बैजू बावरा के उल्लेख के बिना अधूरा ही रहेगा। संगीतकार नौशाद को भारतीय संगीत के रागों के प्रति कितनी श्रद्धा थी, इस फिल्म के गीतों को सुन कर स्पष्ट हो जाता है। अपने समय के जाने-माने संगीतज्ञों को फिल्म संगीत के मंच पर लाने में नौशाद अग्रणी रहे हैं। आज की गोष्ठी में हम फिल्म बैजू बावरा के एक गीत के माधम से प्रकृति के रंगों को बिखेरने में सक्षम राग देसी अथवा देसी तोड़ी पर चर्चा करेंगे।  

ये वर्ष के एक नये अंक और एक नये शीर्षक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपकी इस सुरीली गोष्ठी में उपस्थित हूँ। विगत एक वर्ष तक आपका प्रिय स्तम्भ सुर संगम, अब आपके सुझावों के अनुरूप न केवल नये शीर्षक, बल्कि नये कलेवर के साथ आपके सम्मुख प्रस्तुत है। मित्रों, इस बदले हुए स्वरूप में अब आपकी सहभागिता भी रहेगी। आज की स्वरगोष्ठी में हमारी चर्चा के विषय हैं- राग देसी, उस्ताद अमीर खान, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर (डी.वी. पलुस्कर),संगीतकार नौशाद और फिल्म बैजू बावरा
मित्रों, १९५३ में एक फिल्म- बैजू बावरा प्रदर्शित हुई थी। अपने समय की सफल फिल्मों में यह एक सफलतम फिल्म थी। अकबर के समकालीन कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कुछ दन्तकथाओं के मिश्रण से बुने हुए कथानक पर बनी इस फिल्म को आज भी केवल इसलिए याद किया जाता है कि इसका गीत-संगीत भारतीय संगीत के रागों पर केन्द्रित था। फिल्म के कथानक के अनुसार अकबर के समकालीन सन्त-संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन सर्वश्रेष्ठ थे। श्रेष्ठता के कारण ही तानसेन की गणना अकबर के नवरत्नों में की गई थी। स्वामी हरिदास के ही एक अन्य शिष्य थे- बैजू अथवा बैजनाथ, जिसका संगीत मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था। फिल्म के कथानक का निष्कर्ष यह था कि संगीत जब राज दरबार की दीवारों से घिर जाता है, तो उसका लक्ष्य अपने स्वामी की प्रशस्ति तक सीमित हो जाता है, जबकि मुक्त प्राकृतिक परिवेश में पनपने वाला संगीत ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण होता है। राग देसी के स्वरों से पगा जो गीत आज हमारी चर्चा में है, उसका फिल्मांकन बादशाह अकबर के दरबार में किया गया था। तानसेन और बैजू बावरा के बीच एक सांगीतिक प्रतियोगिता बादशाह के सम्मुख, उन्हीं के आदेश से, भरे दरबार में आयोजित की गई और कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रतियोगिता में तानसेन की तुलना में बैजू बावरा की श्रेष्ठता सिद्ध हुई थी। आज का गीत फिल्म के इसी प्रसंग में प्रस्तुत किया गया था। इस गीत में अपने समय के दो दिग्गज गायक उस्ताद अमीर खाँ और पण्डित डी.वी. पलुस्कर ने स्वर दिया था। आइए पहले इस गीत को सुनते हैं, फिर इस चर्चा को आगे बढ़ाएँगे।

फिल्म – बैजू बावरा : आज गावत मन मेरो झूम के...: स्वर – उस्ताद अमीर खाँ और पं. डी.वी. पलुस्कर

मित्रों, अभी आपने जो युगल गीत सुना, वह तीनताल में निबद्ध है। परदे पर तानसेन के लिए उस्ताद अमीर खाँ ने और बैजू बावरा के लिए पण्डित पलुस्कर ने स्वर दिया था। मित्रों, इन दोनों कलासाधकों का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विशाल है कि स्वरगोष्ठी के आज के अंक में मात्र कुछ पंक्तियों में समेटा नहीं जा सकता। भविष्य में इन संगीतज्ञों पर पूरा एक अंक समर्पित करेंगे। फिल्मी परम्पराओं के अनुसार इस गीत के रिकार्ड पर गीतकार, शकील बदायूनी और संगीतकार, नौशाद के नाम अंकित हैं। अपने समय के इन दो दिग्गज संगीतज्ञों की उपस्थिति में क्या नौशाद साहब गीत के एक भी स्वर, लय और ताल में उन्हें निर्देशित कर पाए होंगे? वर्षों पहले एक साक्षात्कार में नौशाद जी ने स्वयं स्वीकार किया था कि मैंने उन्हें फिल्म के सिचुएशन की जानकारी दी और गाने के बोल दिये। उन्होने आपस में सलाह-मशविरा कर राग-ताल तय किये और फिर रिकार्डिंग शुरू...आइए, अब हम आपको राग देसी में निबद्ध एक विलम्बित खयाल री मोसों करत बतियाँ.... सुनवाते हैं, जिसके स्वरों में आप उपरोक्त फिल्मी गीत के स्वरों को खोजने का प्रयास करें। ग्वालियर घराने के गवैये उस्ताद उम्मीद अली खाँ (१९१०-१९७९) के स्वरों में राग देसी के इस खिले स्वरूप का अनुभव आप स्वयं करे।

विलम्बित खयाल : राग – देसी : स्वर – उस्ताद उम्मेद अली खाँ

आइए, अब थोड़ी चर्चा राग देसी के बारे में करते है। इस राग को देसी के अलावा देसी तोड़ी अथवा देस तोड़ी भी कहते हैं। यह आसावरी थाट का राग है। इसमे शुद्ध धैवत के स्थान पर कोमल धैवत का प्रयोग किया जाता है। शेष सभी स्वर राग देस के समान होते हैं। फिल्म बैजू बावरा में इस राग का संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त मुखर प्रयोग किया गया था। आइए, अब हम आपको सारंगी पर राग देसी की एक आकर्षक अवतारणा सुनवाते है। वादक हैं, १८८८ में जन्में, बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों के जाने-माने सारंगीनवाज़ उस्ताद मसीत खाँ, जिन्होने अपने समय के लगभग सभी दिग्गज गायक कलाकारों के साथ संगति कर यश पाया था।

सारंगी वादन : राग – देसी : वादक – उस्ताद मसीत खाँ

अब हम आज के अंक को यहीं विराम देते हैं और आपको इस सुरीली संगोष्ठी में सादर आमंत्रित करते हैं। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। हम आपके सुझाव, समालोचना, प्रतिक्रिया और फरमाइश की प्रतीक्षा करेंगे और उन्हें पूरा सम्मान देंगे। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा admin@radioplaybackindia.com पर अपना सन्देश भेज कर हमारी गोष्ठी में शामिल हो सकते हैं। आज हम आपसे यहीं विदा लेते हैं, अगले अंक में हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी।

झरोखा अगले अंक का
आपको स्मरण ही होगा कि ४४वें अंक से हमने लोकगीतों के अन्तर्गत आने वाले संस्कार गीतों की श्रृंखला का शुभारम्भ किया था। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में हम यज्ञोपवीत संस्कार के गीत के साथ-साथ विवाह संस्कार के गीतों की भी शुरुआत करेंगे। भविष्य में हम प्रयास करेंगे कि प्रत्येक मास कम से कम एक अंक लोक-संगीत पर अवश्य हो। अगले सप्ताह हम लोक-संगीत की सोंधी महक लिये हुए गीतों के साथ उपस्थित होंगे। हमारी इस सुरीली महफिल में अवश्य पधारिएगा।   

कृष्णमोहन मिश्र 


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